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Jupiter As Devguru Brihaspati.

1. बृहस्पति और तारा की कथा – प्रेम, पीड़ा और क्षमा की गाथाबहुत समय पहले, देवताओं और असुरों के बीच लगातार युद्ध होते रहते थे। देवराज इंद्र के प्रमुख गुरु थे देवगुरु बृहस्पति, जो केवल धार्मिक शिक्षक ही नहीं, बल्कि राजनीति, नीति और वेदों के अद्वितीय ज्ञाता भी थे। लेकिन बृहस्पति के जीवन में एक गहरी पीड़ा थी।तारा का मोहभंग और चंद्र से प्रेमबृहस्पति की पत्नी तारा, जो अत्यंत सुंदर और बुद्धिमती थी, धीरे-धीरे चंद्रदेव की ओर आकर्षित हो गई। चंद्र का रूप और मधुरता तारा को लुभा गए। अंततः तारा बृहस्पति को छोड़कर चंद्र के पास चली गई।इससे देवताओं के बीच बड़ा विवाद हुआ। अंत में ब्रह्मा जी ने न्याय किया और तारा को बृहस्पति के पास लौटने का आदेश दिया। तारा लौटी, लेकिन उसके गर्भ से एक पुत्र ‘बुध’ का जन्म हुआ, जो चंद्र का पुत्र था। बृहस्पति ने बुध को अपनाया और उसका पालन-पोषण किया। इस घटना ने उन्हें जीवन की क्षणभंगुरता और मोह की प्रकृति को गहराई से समझाया।

2. जब बृहस्पति ने लिया शुक्राचार्य का रूप – बुद्धि और रणनीति की कथाएक समय की बात है, बृहस्पति असुरों के गुरु शुक्राचार्य की विलक्षण विद्या “संजीवनी विद्या” (जो मृत को जीवित कर सकती है) को जानना चाहते थे। यह विद्या केवल शुक्राचार्य को आती थी।बृहस्पति ने एक योजना बनाई—उन्होंने शुक्राचार्य का रूप धर लिया और असुरों के बीच रहने लगे। सभी को लगा कि वही उनके असली गुरु हैं। देवयानी, शुक्राचार्य की पुत्री, इस बदलाव को महसूस करने लगी। उसे अपने “पिता” के व्यवहार में कोमलता और बदलाव नज़र आए, जो पहले कभी नहीं दिखा।देवयानी ने ध्यान और तप से सच्चाई को देखा—यह तो बृहस्पति थे, जो छलपूर्वक वहां उपस्थित थे!जब सच्चाई उजागर हुई, बृहस्पति ने स्वीकार किया कि वे केवल ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे। उन्होंने असुरों की अनुशासनशीलता की प्रशंसा की। बृहस्पति की इस विनम्रता और ज्ञान की भूख से प्रभावित होकर, कुछ असुर भी उनके शिष्य बन गए।

कथा से सीख: बृहस्पति केवल देवताओं के गुरु नहीं, बल्कि बुद्धि, संयम और सत्य के प्रतीक हैं।उनका जीवन सिखाता है किधोखा सहना भी जीवन का हिस्सा है,क्षमा और धैर्य से बड़ा कोई अस्त्र नहीं,और जब इरादा ज्ञान प्राप्त करने का हो, तो रणनीति भी धर्म बन जाती है।